“जैसे गुलमोहर भी अपनी कहानी सुनता-सुनता मुस्करा रहा था”-मान लें गुलमोहर शाम को वहाँ आए पंछियों को अपनी कहानी सुनाती है। वह क्या - क्या कहेगा? |
मेरा नाम गुलमोहर है। मैं पाँच वर्ष पुराना पेड़ हूँ। मुझे यहाँ एक प्यारी बच्ची की माँ ने लगाया था, जिसका नाम मीना है। उसे फूल बहुत अच्छे लगते थे और उसने मुझे इसी उद्देश्य से लगाया कि मैं बड़ा होकर उसे लाल रंग के फूल दूँगा। आज मैं बड़ा हो गया हूँ। चार वर्ष तक मीना ने मेरी बहुत सेवा की। उसके प्रेम के कारण ही मैं आज एक बड़ा वृक्ष बन पाया हूँ। परन्तु चौथे साल के बाद भी मुझ पर फूल नहीं आए।
मीना की माँ मुझे कटवाकर दूसरा लगवाना चाहती थी। मैं स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ कि मीना मेरी संरक्षिका थी। उसने बड़े जतन से मेरा पालन-पोषण किया है। इसी साल मैंने मीना को सुन्दर फूल दिए हैं। इन पाँचों वर्षों में मैंने अपने आसपास के वातावरण को भली प्रकारसे समझा है। मनुष्य कुछ स्वार्थी होते हैं, तो कुछ परोपकारी। मीना परोपकारी लोगों में से एक है। मेरी छाँव में कोई न कोई आकर बैठता है। परंतु सब अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर ही मेरी छाँव के नीचे आते हैं। मुझे बहुत दुख होता है कि वे मुझे प्यार से सहलाते नहीं हैं। मुझे थोड़ा पानी नहीं दे सकते। वे मुझे स्नेह से भरा एक स्पर्श नहीं देते। वे हमें बेजान वस्तु समझते हैं। जिनमें न कोई भाव है न कोई प्यार। इन ५ सालों में मीना के अतिरिक्त मुझे और कोई मित्र नहीं मिला। उसके रहते मुझे किसी से भय खाने की आवश्यकता नहीं है। आज तो उसने अपने मित्रों के साथ मेरा वर्षगाँठ भी मानाया है। इससे बढ़कर खुशी की बात क्या है ?
मीना की माँ मुझे कटवाकर दूसरा लगवाना चाहती थी। मैं स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ कि मीना मेरी संरक्षिका थी। उसने बड़े जतन से मेरा पालन-पोषण किया है। इसी साल मैंने मीना को सुन्दर फूल दिए हैं। इन पाँचों वर्षों में मैंने अपने आसपास के वातावरण को भली प्रकारसे समझा है। मनुष्य कुछ स्वार्थी होते हैं, तो कुछ परोपकारी। मीना परोपकारी लोगों में से एक है। मेरी छाँव में कोई न कोई आकर बैठता है। परंतु सब अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर ही मेरी छाँव के नीचे आते हैं। मुझे बहुत दुख होता है कि वे मुझे प्यार से सहलाते नहीं हैं। मुझे थोड़ा पानी नहीं दे सकते। वे मुझे स्नेह से भरा एक स्पर्श नहीं देते। वे हमें बेजान वस्तु समझते हैं। जिनमें न कोई भाव है न कोई प्यार। इन ५ सालों में मीना के अतिरिक्त मुझे और कोई मित्र नहीं मिला। उसके रहते मुझे किसी से भय खाने की आवश्यकता नहीं है। आज तो उसने अपने मित्रों के साथ मेरा वर्षगाँठ भी मानाया है। इससे बढ़कर खुशी की बात क्या है ?
achhi bani he...dhanyavad
ReplyDeleteI want hindi handbook standard 7
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